From my pen...
ज़िंदगी तू क्या है?
ज़िंदगी तू चीज़ है क्या, समझ न आई
हाथों में बुलबुला है या खुद की परछाई...
शतरंज के मोहरे हैं...
कभी इधर चल, कभी उधर चल
चेकमेट आया,
लाइफ का गेम क्लोज़ हुआ...
थम गई नब्ज़, अब न बचा एक पल
आज बेटी के साथ बैठे सामने लगे पर्दे को देखा
तो लगा...
यही तो है "ज़िंदगी"
एक रील जो पर्दे पर चल रही है...
कभी हंसा रही है, कभी रुला रही है...
पर जो भी है, जैसी भी है
अच्छी है...
कम से कम चलते फिल्म की तरह...
लग तो रही है "सच्ची" है

Wow, बहुत खूब, दिल से
ReplyDeleteVery Nice creation.
ReplyDelete